प्यारी बहनों,
देशभर में मार्च के दूसरे सप्ताह से सुपरवाईज़र/ सीडीपीओ द्वारा आंगनवाड़ी वर्कर्स को अपने फोन में पोषण ट्रैकर ऐप डाउनलोड करने और कुछ ही दिनों में इसमें सूचना अपलोड करने के लिए कहा जा रहा है। वर्कर्स को डराया धमकाया जा रहा है कि अगर वे ऐसा नहीं कर पाए तो उन्हें अप्रैल माह से वेतन नहीं मिलेगा। जिन्हें सरकार से एंड्राॅयड फोन नहीं मिला है, उन्हें तुरंत अपना एंड्राॅयड फोन खरीदने के लिए कहा जा रहा है। जिन्हें सरकार ने 2017 / 2018 में पुराने संस्करण के फोन दिए थे, उन्हें भी स्वयं अपने लिए नया फोन खरीदने के लिए कहा जा रहा है। देशभर में आंगनवाड़ी वर्कर्स इसके खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं।
अचानक इतना कोलाहल क्यों?
कार्यकर्ता सोच रहे हैं कि कोरोना महामारी के पुनरुत्थान के दौरान, इस नए मोबाइल एप्लिकेशन के बारे में अचानक इतना कोलाहल क्यों हो गया?
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 4 मार्च 2021 को राज्य सरकारों को एक आदेश जारी किया है जिसमें मंत्रालय द्वारा सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों द्वारा 15 मार्च 2021 तक पोषण ट्रैकर मोबाइल ऐप डाउनलोड करने के काम को पूरा करने के लिए कहा गया है। इस आदेश में आगे कहा गया है “कृप्या ध्यान दें कि मार्च 2021 के बाद आंगनवाड़ी वर्कर्स के मानदेय का भुगतान सभी राज्यों / केंद्र शासित प्रदेशों में पोषण ट्रैकर ऐप डाउनलोड करने और डेटा के त्वरित इनपुट से जोड़ा जाएगा। 2021 की पहली तिमाही के बाद से राज्यों /केंद्र शासित प्रदेशों को खाद्यान्न / धनराशि का आवंटन भी पोषण ट्रैकर प्रणाली पर लाभार्थियों के उपलब्ध डेटा पर आधारित होगा। ‘(दिनांक 4 मार्च 2021 को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, पोषण अभियान द्वारा जारी पत्र क्रमांक थ्ण्छवण्च्।ध्41ध्2021.ब्च्डन् ;म.91729द्ध )।
क्या ऐसे अल्टीमेटम का कोई औचित्य है?
नहीं ! सरकार ने चयनित जिलों में 2017-18 के दौरान ‘पोषण अभियान’ या राष्ट्रीय पोषण मिशन के माध्यम से रिपोर्टिंग प्रणाली के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया शुरू की। रिपोर्टिंग प्रणाली सीएएस- नामक एक अन्य मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से थी और इसे सभी जिलों में लागू नहीं किया गया था। सरकार ने जनवरी 2021 में एक नया मोबाइल एप्लिकेशन ‘पोषण ट्रैकर’ विकसित किया है। यह केवल एंड्रॉइड 6 या उससे ऊपर के मोबाइल फोन में काम करेगा। यहां तक कि राज्यों को मोबाइल, सिम कार्ड, डेटा पैक आदि की व्यवस्था का निर्देश भी केवल दो महीने पहले दिया गया था। मोबाइल फोन की खरीद और वितरण की प्रक्रिया अभी तक कई राज्यों में शुरू ही नहीं हुई है।
ऐसी स्थिति में, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 4 मार्च को यह आदेश जारी किया है और आवेदन को 10 दिनों के भीतर डाउनलोड करना अनिवार्य कर दिया है! आदेश में कहा गया है कि यह आईसीडीएस के लाभार्थियों, कुपोषित बच्चों और महिलाओं के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के वेतन और पोषाहार /फंड को रोक देगा। यह अवैध और अनैतिक है जिसका सिर से पैर तक विरोध किया जाना चाहिए।
जहां वर्कर्स को मोबाइल फोन उपलब्ध कराया गया था, वहां क्या स्थिति है?
कुछ राज्यों के कुछ जिलों में, 2017/18 की शुरुआत में मोबाइल फोन वितरित किए गए थे। सीएएस मोबाइल ऐप का इस्तेमाल ऑनलाइन रिपोर्टिंग के लिए किया जा रहा था। कई जिलों/राज्यों में पारदर्शी निविदा प्रणाली के बिना खरीदे गए मोबाइल फोन में शुरुआत से ही शिकायतें थीं। अब उनमें से कई मोबाईल फोन काम नहीं कर रहे हैं। उन फोन को बदलने का कोई निर्देश नहीं है। यहां तक कि कई जिलों में जहां आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को मोबाइल का वितरण किया गया था, उन्हें कभी भी भुगतान नहीं किया गया।
हमारे देश के कई जिलों में, जहाँ गंभीर कुपोषण मौजूद है, जैसे कई राज्यों में आदिवासी क्षेत्रों में, नेटवर्क उपलब्ध नहीं है। हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में वर्कर्स को ऑनलाइन रिपोर्ट अपलोड करने के लिए कई किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है।
‘पोषण ट्रैकर ऐप’
यह ऐप मोबाइल फोन के कई पुराने संस्करणों (एंड्रॉइड 6 से कम) के साथ संगत नहीं है। इसमें कई विशेषताएं हैं और यह मोबाइल में बहुत जगह ले रहा है और सामान्य उपयोग में मोबाइल में डाउनलोड और चालू नहीं किया जा सकता है।
यह ऐप पूरी तरह से अंग्रेजी में है और सभी रिकॉर्ड आंगनवाड़ी केंद्रों में स्थानीय भाषाओं में हैं। इसका स्थानीय भाषाओं में होना न केवल आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए आवश्यक है, बल्कि स्थानीय समुदाय के लिए प्रगति की निगरानी करने के लिए भी आवश्यक है क्योंकि आईसीडीएस में स्थानीय भाषाओं में रिकॉर्ड होना चाहिए।
कोई नेटवर्क नहीं/खराब कनेक्टिविटी, अपर्याप्त डेटा योजना, प्रशिक्षण के लिए समय न होना
अब तक, लगभग सभी जिलों में, मोबाइल वितरण नहीं होने के बावजूद, वर्कर्स को ‘पोषण माह’ जैसे कार्यक्रमों की रिपोर्ट/ फोटो अपलोड करने के लिए कहा जाता है। ऐसे में कार्यकर्ता मोबाइल फोन के रखरखाव व डेटा के लिए भी अपनी जेब से भुगतान कर रहे हैं।
डेटा प्लान के लिए आवंटित प्रति माह 200 रुपये की राशि अपर्याप्त है, जहां वर्कर्स को हर दिन कितनी फोटो अपलोड करने के लिए कहा जाता है। अधिकांश राज्यों में इसका भुगतान भी नहीं किया जाता है।
कई राज्यों में पहले से ही संपूर्ण डेटा कैस एप्लिकेशन में है। पहले से उपलब्ध डेटा को नए प्रोग्राम/ एप्लिकेशन में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। किसी को नहीं पता कि मौजूदा रिपोर्टिंग प्रणाली में क्या खराबी है। सीडीपीओ कार्यालय या सुपरवाइज़ करने की प्रक्रिया पहले से इसमें शामिल नहीं है और अब वर्कर्स पर नया ऐप थोपा जा रहा है।
आधार, डेटा सुरक्षा और लक्ष्यीकरण
रिपोर्टिंग प्रणाली से संबंधित कई अन्य समस्याएं हैं, जिनका वर्कर्स को सामना करना पड़ता है। इस ऐप के लिए वर्कर्स, सुपरवाईज़र और सीडीपीओ को उचित प्रशिक्षण के लिए कोई समय नहीं दिया गया था। वर्कर्स को डेटा समय पर अपलोड करने के लिए बच्चों, पड़ोसियों या किसी की मदद लेने के लिए कहा जाता है। कई राज्यों में लाभार्थियों के साथ ऑनलाइन धोखाधड़ी के कई मामले सामने आए थे। पंजाब, उत्तराखंड आदि में, पीएमएमवीवाई के तहत माताओं के खाते में भुगतान किया गया धन, खाता सत्यापन के बहाने उनके खातों से निकाल लिया गया था।
सभी किशोरों की जानकारी भी एकत्र की जा रही है। कई लाभार्थी बिना किसी लाभ के अपना आधार नंबर और खाता विवरण देने से इनकार कर देते हैं।
महामारी के दौरान, प्रवासी मजदूरों के बच्चों सहित सभी बच्चों को पूरक पोषाहार प्रदान किया गया था। अब, यह ऑनलाइन डेटा, उनके आधार संख्या सहित उनके दस्तावेजों पर निर्भर करता है, जिसके बिना उन्हें सेवाएं उपलब्ध नहीं होंगी। इससे आंगनवाड़ी केंद्रों के कई लाभार्थियों इसकी सेवाओं से वंचित हो जाऐंगे।
प्रत्येक बच्चे और मां की प्रगति की प्रभावी रिपोर्टिंग और निगरानी के लिए यदि कंप्यूटर नहीं है, तो इस रिपोर्टिंग प्रणाली को कम से कम एक टैबलेट की आवश्यकता है।
पूरे कार्यक्रम को राज्य सरकारों/ विभागों और विभागीय निगरानी प्रणाली को दरकिनार करते हुए डीएम के माध्यम से गतिविधियों की केंद्रीय निगरानी करने के लिए इस तरह से डिजाइन किया गया है। सीधे वेतन को रोकने जैसे दंडात्मक उपाय अपनाए जा रहे हैं, वो भी बिना स्पष्टीकरण मांगे। यह हमारे देश के संघीय ढांचे के खिलाफ है।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और लाभार्थियों को क्यों दंडित किया जा रहा है
लॉकडाउन के बाद से, आंगनवाड़ी केंद्र अभी तक पूरी तरह से चालू नहीं हैं। लेकिन आंगनवाड़ी वर्कर्स अपनी जान जोखिम में डालकर कोविद -19 महामारी से लड़ रहे हैं। मोबाइल फोन की अनुपलब्धता और डेटा के लिए भुगतान न होने में आंगनवाड़ी वर्कर्स या लाभार्थियों की कोई गलती नहीं है।
मंत्रालय द्वारा आंगनवाड़ी वर्कर्स के भुगतान को पोषण ट्रैकर ऐप डाउनलोड करने के साथ जोड़ने और मार्च 2021 से आंगनवाड़ी वर्कर्स के वेतन को रोकने का निर्णय अवैध और अनैतिक है। इसके अलावा, 2021 की पहली तिमाही से धन और पोषाहार के आबंटन को वापस लेने का निर्णय, कुपोषित बच्चों को उनकी किसी गलती के बिना भोजन के अधिकार से वंचित करेगा।
नई तकनीकों का उपयोग, काम के बोझ को कम करने और दक्षता में सुधार के लिए करने के बजाय, इसका उपयोग जमीनी स्तर के वर्कर्स और लाभार्थियों को दंडित करने के लिए किया जाता है। इस तरह के कदमों से आईसीडीएस का लक्ष्यीकरण होगा और अंततः आईसीडीएस समाप्त हो जाएगा।
ये घोषणाए वही सरकार कर रही है, जिसने कोविद महामारी और तालाबंदी के दौरान कुपोषण और गरीबी में खतरनाक बढ़ोतरी होने के बावजूद आईसीडीएस के बजट में 30 प्रतिशत की कटौती की है। यह कुछ और नहीं बल्कि आईसीडीएस को खत्म करने का एक और कदम है।
आइफा मांग करती है कि महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को आंगनवाड़ी वर्कर्स के वेतन (मानदेय) और आईसीडीएस के खाद्यान्न / फंड के आवंटन को ‘पोषण ट्रैकर ऐप’ के कामकाज से जोड़ने के आदेश को तुरंत वापस लेना चाहिए।
हम यह भी मांग करती हैं कि सरकार को वेब आधारित रिपोर्टिंग सिस्टम में पूरी तरह से स्थानांतरित करने से पहले आईसीडीएस के लिए पर्याप्त वित्तीय आवंटन सुनिश्चित करना चाहिए ताकि आईसीडीएस की मूलभूत संरचना, गुणवत्तापूर्ण पोषाहार, ठीक से प्रशिक्षण में सुधार के साथ साथ मोबाइल फोन, मोबाइल डेटा, प्रशिक्षण, नेटवर्क की उपलब्धता आदि में भी सुधार लाया जा सके।
आइफा सरकार को चेतावनी देती है कि आंगनवाड़ी वर्कर्स और हैल्पर्स, लाखों आंगनवाड़ी वर्कर्स की आजीविका हमारे बच्चों के भविष्य के साथ ऐसे तुगलकी प्रयोगों को बर्दाश्त नहीं करेंगी। हम 2-9 अप्रैल 2021 कोे राष्ट्रीय विरोध सप्ताह आयोजित करेंगे। आइफा 9 अप्रैल 2021 को आदेश की प्रतियां जलाएगी।
आइए, हम इस जन विरोधी मोदी सरकार का एहसास दिलाएं कि हम गुलाम नहीं हैं और हम इस तरह के मजदूर विरोधी कदमों को वापस करवा कर ही दम लेंगे।
यदि वर्कर्स का वेतन रूका या आईसीडीएस के फंड पर रोक लगी तो आइफा, लाभार्थियों के साथ मिलकर बड़े पैमाने पर संघर्ष जैसे हड़ताल भी करने पर मजबूर होगी।