संसद मार्च फिर से क्यों?
अखिल भारतीय आंगनवाड़ी सेविका एवं सहायिका फैडरेशन ( आइफा ) ने 25 फरवरी 2019 को संसद मार्च करने का फैसला लिया है।
दो महीने के भीतर ही संसदीय चुनाव होने वाले हैं। भाजपा के नेतृत्व में वर्तमान एनडीए सरकार ने अपना आखिरी बजट भी पेश कर दिया जोकि पारित भी हो चुका है। अब इस सरकार के सत्ता में रहते हुए कोई भी संसद सत्र नहीं होगा। देश चुनावी माहौल में होगा। तो फिर संसद मार्च की ज़रूरत ही क्या है?
यह संसद मार्च आइफा द्वारा पिछले पांच सालों में भाजपा सरकार की उन नीतियों व कदमों के खिलाफ जारी संघर्षों का समापन है जिन्होंने न केवल हमारी जायज़ मांगों को नज़रअंदाज़ किया है बल्कि स्वयं आईसीडीएस योजना को ही समाप्त करने के कदम उठाए हैं। मजदूर का दर्जा पाने और बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार के लिए हमारा संघर्ष पिछले 28 सालों से जारी है और आगे भी जारी रहेगा। हम दिल्ली आ रहे हैं ताकि भाजपा सरकार को उसके कामों की चार्जशीट दे सके कि वे सत्ता में आंगनवाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं का वेतन बढ़ाने और आईसीडीएस को मजबूत करने का वादा करके आए थे लेकिन इस सरकार ने हमारे साथ धोखा किया।
लोग पूछते हैं कि कहीं ये राजनीति से प्रभावित संघर्ष तो नहीं? क्या मोदी जी ने सितम्बर 2018 में आंगनवाड़ी वर्कर्स, मिनी आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स का वेतन नहीं बढ़ाया? क्या यह सच नहीं है कि इस बजट में वित मंत्री ने आंगनवाड़ी वर्कर्स के वेतन में और भी 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी की घोषणा नहीं की है?
सबसे पहली बात तो यह है कि अंतरिम वित्त मंत्री पियूष गोयल ने 1 फरवरी 2019 को अंतरिम बजट में आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स के लिए और अधिक वेतन बढ़ोतरी नहीं की है। उन्होंने उस घोषणा के बारे में बताया है जो प्रधानमंत्री ने सीटू, अखिल भारतीय किसान सभा और अखिल भारतीय खेत मजदूर यूनियन के नेतृत्व में मजदूर किसान संघर्ष रैली के दबाव में आकर 11 सितम्बर 2018 को की थी कि आंगनवाड़ी वर्कर्स का वेतन 1500रू, मिनी आंगनवाड़ी वर्कर्स का वेतन 1250रू और हैल्पर्स का वेतन 750 रू बढ़ाया गया है।
लेकिन मोदी सरकार ने फिर से आंगनवाउ़ी वर्कर्स और हैल्पर्स को धोखा दिया। सरकार की सितम्बर में जारी हुई प्रैस विज्ञप्ति के अनुसार इस अतिरिक्त बढ़ोतरी के लिए 4259 करोड़ रू प्रति वर्ष के आवंटन की ज़रूरत थी। लेकिन बजट 2019 - 20 में ‘आंगनवाड़ी सेवाओं’ के लिए केवल 1944.18 करोड़ रू ही आवंटित किए गए हैं ( इस साल 19834.37 करोड़ रू आवंटित किए गए हैं, पिछले साल 17,870.19 करोड़ रू आवंटित किए गए थे ) प्रधानमंत्री द्वारा घोषित की गई वेतन वृद्धि को लागू करने के लिए जितनी राशि की ज़रूरत है यह राशि उसके आधे हिस्से से भी कम है।
यही कारण है कि देश के अधिकतर राज्यों में बढ़ा हुआ वेतन अभी तक नहीं मिला है जबकि प्रधानमंत्री ने कहा था कि बढ़ा हुआ वेतन दिवाली के तोहफे के रूप में मिलेगा। बहुत से राज्यों में अक्टूबर 2018 से वेतन ही नहीं मिला है।
सरकार ने न केवल आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स के साथ धोखा किया है बल्कि लाभार्थियों के साथ भी धोखा किया है। भारत सरकार ने सितम्बर 2017 में घोषणा की थी कि यह पूरक पोषाहार के आवंटन में बढ़ोतरी करने वाली है और तीन सालों तक अतिरिक्त 12000 करोड़ रू इस पर व्यय करेगी इसका अर्थ हुआ कि पोषाहार के लिए प्रति वर्ष 4000 करोड़ रू। लेकिन यह आवंटन न तो पिछले साल के बजट में और न ही इस साल के बजट में किया गया। अधिकतर राज्यों में कई महीनों से पोषाहार की आपूर्ति भी नहीं की जा रही है।
तो फिर वित्त मंत्री ने बजट भाषण में आईसीडीएस के लिए जो 27,584.37 करोड़ रू आवंटित किए गए हैं वो क्या है?
यह आंगनवाड़ी कर्मचारियों के साथ जनता को भी गुमराह करने का एक और प्रयास है। 2016 - 17 में भारत सरकार ने बहुत सी योजनाओं जैसे किशोरी शक्ति योजना, बाल सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय क्रैच योजना, मातृत्व लाभ योजना और पोषण अभियान ( बाद में ) को एकसाथ ‘‘अम्ब्रैला आईसीडीएस’’ में डाल दिया और ‘‘आईसीडीएस’’ का नाम बदलकर ‘‘आंगनवाड़ी सेवाएं’’ रख दिया। 27,584.37 करोड़ रू का आवंटन इन्हीं छः योजनाओं के लिए किया गया है। ‘‘आंगनवाड़ी सेवाओं’’ के लिए केवल 19,834.37 करोड़ रू आवंटित किए गए हैं।
‘‘पोषण मिशन’’ के बारे में क्या? क्या कुपोषण कम करने के लिए यह लाभदायक नहीं?
पोषण मिशन में, 3400 करोड़ रू का वार्षिक बजट केवल माॅनिटरिंग व कन्वर्जैंस के प्रशासनिक खर्चों के लिए ही है। इसमें से एक पैसा भी लाभार्थियों के लिए नहीं है। इसके अलावा प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना का बजट आवंटन जो पिछले साल 2400 करोड़ रू था, अब घटाकर 1200 करोड़ रू कर दिया गया है।
केवल मोदी और भाजपा को ही लक्ष्य क्यों बना रहे हैं?
मोदी सरकार पहली सरकार है जिसने अपने पहले ही बजट में आईसीडीएस के लिए किए जाने वाले आवंटन में भारी कटौती कर बजट को आधे से भी कम कर दिया था। इसने योजना आयोग को समाप्त कर दिया और केंद्रीय योजनाओं को समाप्त करने का प्रस्ताव भी रखा। अब योजना के खर्चे का केवल 60 प्रतिशत हिस्सा केंद्र सरकार उठा रही है बाकी खर्चा राज्य सरकारें उठा रही हैं- उदाहरणतः केंद्र सरकार एक आंगनवाड़ी वर्कर के वेतन (4500रू) का 60 प्रतिशत हिस्सा यानि केवल 2700 रू भुगतान करती है। यह आईसीडीएस का निजीकरण करने के प्रयास कर रही है। इसने कोरपोरेट वेदांत के साथ समझौता किया है कि आंगनवाड़ी केंद्रों का आधा समय क्षेत्र की महिलाओं के कौशल विकास के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
अब मंत्रालय ने नीति आयोग के निर्देशानुसार, लाभार्थियों को पोषाहार के बदले पैसा (डीबीटी) दे रहा है। शुरूआती तौर पर इसे उत्तर प्रदेश और राजस्थान से शुरू करने का प्रस्ताव है। यदि यह लागू हो गया तो आईसीडीएस समाप्त हो जाएगा।
बहुत से राज्यों ने आंगनवाड़ी कर्मचारियों का वेतन बढ़ाया है, कई राज्यों में वर्कर्स को 10000रू प्रतिमाह से अधिक वेतन मिलता है। फिर, राष्ट्रीय स्तर के संघर्ष की क्या ज़रूरत ?
कई राज्यों में मिली यह वेतन वृद्धि और अन्य लाभ आइफा और सीटू की यूनियनों द्वारा चलाए गए निरंतर संघर्षों से ही प्राप्त हुए है। लेकिन सरकार को मूल सवाल पर सिद्धांत लेना है कि आंनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिले। हमारे लिए पंेशन व ग्रेच्युटी का कोई प्रावधान नहीं है। सरकार को 45वें तथा 46वें भारतीय श्रम सम्मेलन की योजना श्रमिकों से संबंधित सिफारिशें - श्रमिक की मान्यता, न्यूनतम वेतन व पेंशन देने पर सिद्धांत लेना है। देशभर में आंगनवाड़ी कर्मचारियों की सेवा शर्तों में समानता नहीं है।
नियमितीकरण, न्यूनतम वेतन व पेंशन जैसी बहुत सी अन्य मांगें अब तक लंबित है - जैसे गैर आईसीडीएस अतिरिक्त काम पर रोक लगाई जाए, मिनी आंगनवाड़ी केंद्रों को पूर्ण केंद्रों में बदलकर मिनी आंगनवाड़ी वर्कर्स को पूरा वेतन दिया जाए, पदोन्नति में उमर की सीमा हटाई जाए, आंगनवाड़ी केंद्रों को मर्ज कर बैंड करने पर रोक लगाई जाए, शिक्षा का अधिकार कानून के तहत प्री स्कूल शिक्षा को लाकर आंगनवाड़ी केंद्रों को इसकी नोडल एजेंसी बनाया जाए, आंगनवाड़ी केंद्रों को पूर्ण कालिक आंगनवाड़ी सह क्रेच केंद्रों में बदल जाये आदि।
हम जानते ही है कि आंगनवाड़ी कर्मचारियों के पिछले संघर्षों ने सभी राजनैतिक पार्टियों पर दबाव बनाया कि वे आंगनवाड़ी कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी का वादा करें। इस बार हमें सभी राजनैतिक दलों पर दबाव बनाना है कि वे 45वें श्रम सम्मेलन की सिफारिशों को लागू करने पर सिद्धांत लें। हमें आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स के अधिकारों, देश के बच्चों के पोषण, स्वास्थ्य व शिक्षा के अधिकारों को मुद्दा बनाकर देश के राष्ट्रीय ऐजेंडे पर लाना है।
इसलिए हम आंगनवाड़ियों के बेहतर ढांचे और सेवाओं की मांग के साथ - साथ 45वें श्रम सम्मेलन की सिफारिशों को लागू करने की मांग तथा पोषाहार के बदले पैसा देने ( डीबीटी ) का विरोध करते हुए देशभर से एक करोड़ हस्ताक्षर एकत्रित करके दिल्ली ला रहे हैं। हम ये हस्ताक्षर मंत्रालय को सौपेंगे।
इसलिए बहनों,
25 फरवरी 2019 को बड़ी से बड़ी संख्या में दिल्ली पहंुचे!
फैडरेशन की लाल वर्दी में आएं!
आओ हम दिल्ली को लाल कर दें और सत्ता वर्ग को अपनी मांगें सुनने के लिए मजबूर कर दें!
आओ 2019 के चुनावी ऐजेंडे में मजदूर वर्ग के मुद्दों को लाएं!
चलो केवल सरकार को ही नहीं बल्कि सरकार की कोरपोरेटों को लाभ पहंुचाने वाली नीतियों को भी बदलें!
आईसीडीएस में पोषाहार के बदले पैसा देने पर रोक लगाई जाए, आईसीडीएस का निजीकरण न किया जाए।
आंगनवाड़ी वर्कर्स व हैल्पर्स को प्रतिमाह न्यूनतम वेतन 18000 रुपये तथा पेंशन 6000 रु दिया जाए। इन्हें नियमित कर सरकारी कर्मचारी बनाया जाए।
आंगनवाड़ियों को पूर्ण समय आंगनवाड़ी सह क्रेच में बदल जाये।